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Tuesday 30 July 2013

इक जरा सी बात मान लो न |

इक जरा सी बात मान लो न
इन कजरारी आँखों से
काजल का एक टिका निकालकर
अपने कानो के पीछे भी
हल्का सा लगा लो न
इक जरा सी बात मान लो न

ये जो तेरी मुस्कान का
तिलिस्मी जाल बिछाया हुआ है,
मेरी रूह पे भी इसका आज
कब्जा सा जमा लो न
इक जरा सी बात मान लो न

ये जो शिकन सलवटे है माथे पर
अश्क इन गोरे गालो पर
जो भी बात अनकही दिल में है
सब मुझसे कह डालो न
इक जरा सी बात मान लो न |

Thursday 25 July 2013

लड़का धार्मिक हो गया है आजकल ।

अब्र के जिल्द से निकलकर
अलसाई सुबह 
सूरज जैसे ही मेरी खिड़की तलक
पहुँचता है
मैं शताब्दी की रफ़्तार से तैयार होकर
मंदिर तलक पहुँच जाता हूँ
मेरी इबादत
सलवार-दुपट्टे में आती है वहां
नज़रे मिलते ही
दुपट्टा सम्भाले
मुहं फुलाए
जुल्फे सरकाए
ग़ुस्से में जो देखती है
मैं बंद आँखों पर तबस्सुम लाकर
उस पत्थर वाली मूर्ति को
उसकी दुआ मुक्कमल होने की
फरियाद लगा देता हूँ

चर्चे ये हो रहे हैं
लड़का धार्मिक हो गया है आजकल ।

अब्र = बादल ; जिल्द = cover ;
तबस्सुम = smile

Wednesday 17 July 2013

commercialize इश्क

"इश्क का बाज़ार
बड़ा commercialize हो गया है
चाँद - तारों की बातों पे तो
आजकल बच्चे भी नही हँसते "! :)

इश्क वाले मजहब के पुजारी

हम secular देश की सरहदों में,
इश्क वाले मजहब के पुजारी है । :)

उधार में

उधार में मुट्ठी भर पुराने पल दे सकती हो क्या ?
ब्याज में पूरी ज़िन्दगी रख लेना
वरना, एक जाम मुस्कान ही पिला दो
रख सको तो बदले में, हमें ही रख लेना ।

जरा लकीरों को किस्मत लिखने तो देता

"जरा मोहब्बत का रंग चखने तो देता
जरा अमीरी का सुरूर छड़ने तो देता
क्यूँ हर कदम में twist देता है उपरवाले
जरा लकीरों को किस्मत लिखने तो देता "|।

शिकवा

तेरे अक्स को पलकों पे पिरो लिया है मैंने
शिकवा ये है की तुझे याद नही करता मैं ।

Story of Rose

Story of Rose : On Rose day
किसी उन्स का , किसी मोहब्बत का
मुखबिर बनूंगा
या आज फिर तेरे
तकिये के नीचे मरूँगा
तू हर रोज़ , एक rose को मारता है
तू क्यूँ घबराता है
क्यूँ इश्क को छुपता है
आज मैं भी उससे मिलना चाहता हूँ
मेरी कीमत पे जिसको
तू हर रोज पाना चाहता है। :)

GOOGLE पे नहीं मिलती है

"शब्दों के खेल से नज्में निकलती है
ये GOOGLE पे नहीं मिलती है !" ;)

न जाने कैसी नौटंकी है इन लफ्जों की

पिछले कुछ दिनों से
इन लफ्जों ने
न जाने क्यूँ मुहं फुलाया हुआ है
न जाने कैसी नौटंकी है
जब भी
इनको चुपचाप
किसी पन्ने पर बेठाता हूँ
कुछ लकीरों में खुदको कैद कर
छुप जाते है कहीं
और मैं परेशान सा
इनको ढूंढे ही जा रहा ...,
जैसे मेरा उन्स गुम है
तेरे दिल से
मिलता ही नहीं अब
न ही कोई मुआवजा है ,
कहीं ये भी गुम न जाए
इनकी तो कोई
report भी नही होती ।

Thursday 4 July 2013

हकीकत !

हकीकत
**************
हर रोज
चाँद लेकर अपनी कश्ती
रात की झील में उतरता है
चांदनी के जाल में
तारा एक नहीं फसता
और फिर से
उदास हुए
छुप जाता है कहीं

पत्थर की मूर्ति में
पूरी आवाम को गिरफ्तार देखकर
rational समझ वाले लोग
उदास हुए
छुपे रहते है कहीं

आदमी हज़ार तरकीबे लगाता है
उसकी ज़िन्दगी से मौत को इश्क न हो
देह फिर भी
चिता की आगोश में छुप ही जाता है ।
~ तपिश