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Sunday 17 February 2013

कहीं किसी घरोंदे में

कहीं किसी घरोंदे में
पाँव आज भी नग्न ही है..,
कहीं, sandal-जूते रोज
matching - matching खेलते है

कहीं किसी घरोंदे में
उजाला आज भी सूरज का मोहताज ही है..,
कहीं, सूरज ढलने से पेहले ही
रोज दिवाली सी बन जाती है

कहीं किसी घरोंदे में
बाग़,खलियान,बगीचे है..,
कहीं, मुफलिस मजदूर
आज रात भी भूखे हैं |

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